गर्भग्रह के बीचों बीच सफेद संगमरमर की जलहरी में भुरभुरे रंग का रूप लिए हमारे शिवज्योंर्तिलिंग है जो हर आने वाले भक्त को दर्शनो का लाभ तो देते ही है साथ ही उसके अपनी छत्रछाया में लेकर इस भव सागर से तरने का ज्ञान भी प्रदान करते है। यहीं स्वयंभू शिव ज्योर्तिलिंग श्रीझाड़खण्डनाथ  है। यहीं शिवज्योंर्तिलिंग पंचनाथों में एक नाथ श्रीझाड़खण्डनाथ  है। महादेव की सेवा में पश्चिम दिशा में क्रमश पूर्व को देखने हुए सफेद सगमरमर में श्री गणेशजी है इनकी ही सर्वप्रथम पूजा करके  ही कार्य की शुरूआत होती है। श्री गणेशजी के पास सफेद संगमरमर मे में स्वामी कार्तिकजी है जो श्रीझाड़खण्डनाथ  की सेवा में उपस्थित होकर महादेव के आदेशो की पालना कर रहें है। श्रीझाड़खण्डनाथ  के इस दरबार में उत्तर पूर्व के कोने की एक अलमारी में दक्षिण दिशा में देखते हुए देखते हुए श्री राम भक्त संकट मोचन श्री हनुमान जी है, जो अमर अजर होने के साथ रूद्र अवतार भी माने जाते है। श्री हनुमानजी के पास ही सालगरामजी भी है जिनकी पूजा अर्चना तुलसी द्वारा होती है। बताया जाता है कि बहुत समय पहले एक मूर्ति खण्डित होने के कारण कृपाग्रहम में पश्चिम दिशा वाली दीवार में स्थान बनाकर श्री गणेशजी माता पार्वतीजी व स्वामी कार्तिकजी को विराजमान किया गया था। कृपाग्रहम् की पश्चिम दीवार के ऊपरी भाग में कैलाश पर्वत पर शिव प्रभू व माँ पार्वती के साथ गणेशजी विराजमान का अतिसुन्दर चित्र बना हुआ है। कृपाग्रहम में विराजमान श्री गणेशजी, मातापार्वतीजी, स्वामि कार्तिकजी के साथ राम भक्त श्री हनुमानजी व श्री सालगरामजी को पंचायत के रूप में भी बोला जाता है। कृपाग्रहम (गर्भग्रह) के अंदर श्री झाडखण्डनाथ शिवज्योर्तिलिंग व पंचायत के ऊपर एक विशाल अष्ट कमल का फूल बनाया गया है। इस कमल में 56 पखुडियां है। यह पखुडियां ठीक वैसी ही है जैसी श्रीरामेश्वरम् मंदिर में कमल के फूल की पखुड़ियां बनी हुई है।

कृपाग्रहम के चारों ओर कुल 76 मूर्तियां बनाई गई है।
स्वयंभू श्रीझाड़खण्डनाथ शिव ज्योर्तिलिंग के दरबार में आकर इतने आंनदित वातावरण का छोड कर मानव कहां भटकना चाहेगा इसी लिए यह बात प्रचलित है कि जो भी भक्त एक बार यहां आकर भोलेनाथ के दर्शन कर लेता है वह यहां का ही होकर रह जाता है। श्रीझाड़खण्डनाथ के दर्शनों से मानव मोक्ष तो निश्चित  है ही परन्तु यहां के स्मर्ण मात्र से ही मानव को तीर्थ यात्रा का सुख व लाभ प्रदान हो जाता है।
श्रीझाड़खण्डनाथ तीर्थ स्थली के गर्भग्रह में शिवज्योंर्तिलिंग की आभा व यहां के वातावरण की सौन्दर्यता ने लेखकों व कवियों को भी प्रभावित किया हुआ है। यहां के प्राकृतिक सौन्दर्यता व मन की बात

शब्दों के रूप का उदाहरण प्रस्तुत करता है :-
श्रीझाड़खण्डनाथ महादेव के दर्शनों से प्रभावित हो कर कवि मंजुनाथ ने बड़ा सुन्दर वर्णन अपनी भावनाओं को शब्दों की माला में ढाला हैः-

मार्गे मंजू मीलन्मधुमालती संगंधयुत रावलरचित जल बंध्समविनी क्षयेथाः

निर्यन्जल कोलाहलकौतुकमुदीश्य ततः समयं समीक्ष्यंनवनौविनोदर मीयेथाः।

मंजुनाथ पश्चिमेन सेनारूनिवेशतटे नारीनिकेटेमुं नवप्राकरार प्रवंदेथा:खेलखण्ड परशुपरिस्त्र्ये  प्रयन्त्दिव: खण्डमिव गोदाज्झाड़खण्ड़ मत्रिवेन्देः

अर्थात :- चमेली के फूलों से वातावरण सुवासित है ऐसा रावलजी का बनाया हुआ जलबंध मार्ग में देखियें। बहते हुये जल का कोलाहल और कौतुक देख चुकने पर यदि समय हो तो इस बंध में नौका विहार का भी आनंद लीजीये। बांध में पश्चिम की ओर सेना के परिसर के निकट जल के किनारे की नवनिर्मित परकोटे में पहुचिये जहां विहार करते हुये आषुतोश भगवान शिव की प्रतिक्षा में उनकी सेवा के लिये मानो स्वर्ग का एक खण्ड ही भूतल पर उतर आया है। यह स्वर्गोमय भूखण्ड श्रीझाड़खण्डनाथ  है और इसलिये प्रणभ्य है।