शिवजी ने राधारूप धारण कर पृथ्वी को धन्य किया
 ( विवरण महाभागवत के आधार पर )

श्रीझाड़खण्डनाथ शिव ज्योर्तिलिंग की शब्दों रूपी यात्रा से पहले हम एक प्रसंग का वर्णन करना चाहते है हमारे लिए यह प्रसंग नया है और यह भी सम्भव है कि आपकी जानकारी में यह प्रसंग हो या फिर आप इससे सहमत न हो हम केवल यह प्रसंग महाभागवत के आधार पर ही दे रहे हैः-

एक समय की बात है कौतुकी भगवान् शिव ने पार्वतीजी से कहा - ’हे देवी ! यदि तुम मुझे प्रसन्न हो तो कहीं पृथ्वी पर तुम पुरूष रूप में अवतार लो और मैं स्त्री रूप धारण करूँ। यहाँ जैसे मैं तुम्हारा पति हूँ और तुम मेरी प्राणप्रिय भार्या हो, वैसे ही वहाँ तुम मेरे पति बनो और मै तुम्हारी पत्नी बनूँ। बस यही मेरा अभीष्ट है। तुम मेरी सभी इच्छाऐं पूर्ण करती रही हो, अतः इसे भी पूरी करों |

शक्तिमान की इच्छा पूर्ण करने के लिये शक्ति ने अपनी स्वीकृति देते हुए कहा-’नवीन नीरद्-सी कान्तिमती मेरी भद्रकाली-मूर्ति श्रीकृष्ण रूप से भूतल पर अवतरित होगी। आप श्री अपने अंश से स्त्री रूप में अवतरित होइये।

भगवान शिव परम संतुष्ट हो उठे और बोले - मैं तुम्हारा प्रिय करने  के लिए अपने नौ रूपों से प्रकट होऊँगा। प्रियं! स्वयं मै प्रेम की साकार मूर्ति वृषभानु नन्दिनी राधा के रूप में अवतीर्ण होऊँगा और तुम्हारी प्राणप्रिय बनकर तुम्हारे साथ विहार करूँगा। मेरी शेष आठ मूर्तियां आठ रमणियों के रूप में प्रकट होंगी और वे ही मनोहरनयना रूक्मिणी, सत्यभामा आदि तुम्हारी पटरानियाँ होगी। इसके अतिरिक्त मेरे ये जो भैरवगण है, वे भी रमणीरूपधारण कर ब्रज की गोपाग्डानाओं के रूप् में भूतल पर अवतीर्ण होंगें।

देवी ने कहा-आपकी इच्छा पूर्ण हो। मैं  आपकी इन मूर्तियों के साथ यथोचित विहार करूँगी। प्रभो! मेरी भी जया और विजया नाम की दो सखियाँ है, वे पुरूष रूप में श्रीदामा और सुदामा होगी विष्णु भगवान् के साथ मेरा पहले ही तय हो चुका है की वह हलधर के रूप में मेरे बडे भाई होंगें और सदैव मेरा कार्य सिध्द करते रहेगें। उन महाबली का नाम राम (बलराम) होगा। इस प्रकार आपकी इच्छा पूरी कर अपनी महती कीर्ति स्थापित करती हुई मै पुनः भूतल से लौट आऊँगी।’ इसी निश्चय के अनुसार पृथ्वी और ब्रहा्जी की प्रार्थना पर श्री पार्वतीजी श्रीकृष्ण रूप में तथा शिवजी राधा रूप में प्रकट हुए। यह एक कल्प में श्री राधा कृष्णा के अवतार का ब्रम्ह रहश्य है, भगवन और भगवती और भगवती कि गूढ़ अभिसंधि को कौन जान सकता है। इसी प्रकार पार्वती को भी नारायण का रूप कहा गया है।