यह स्थान श्रीझाडखण्डनाथ तीर्थ स्थली के गर्भग्रह (शिवलिंग परिसर) के पिछवाडे पश्चिम दिशा में बना है इसमें वर्तमान झाडखण्ड महादेव तीर्थ स्थली के संस्थापक श्री रतनलालजी सोमानी निवास करते है। इस परिसर के आंतरिक भाग की दीवारों पर श्री सोमानीजी ने शिव के भिन्न-भिन्न रूपों के चित्रों से ऐसा सुन्दर सजाया हुआ है मानों शिव इस परिसर में अपने सारे रूपों में आकर भक्तों को दर्शनो का लाभ देने के साथ उनके कष्टों को हरने का आर्शिवाद दे रहे हो। इस परिसर के आंतरिक भाग में अनगिनत शिव के सुंदर फ्रेम किये चित्रों की आभा से सकुन के साथ सांसारिक मोह व मिथ्या से भक्त अपने आप को दूर वास्तविकता के सम्मुख खडा पाता है। आज जब चारों तरफ अशांति-अराजकता का माहौल है वहीं यह स्थान घनी आबादी के क्षेत्र से एकान्त व समानता की स्वच्छ वायु का प्रवाह किये स्वर्ग का सुख प्रदान करता है। इस परिसर के उत्तर-पूर्व के कोने में श्री सोमानीजी का कार्यालय है तथा इस कार्यालय के पीछे उत्तर पश्चिम कमरे में वह श्री विभूति हर गुरूवार को आने वाले भक्त को पूर्ण श्रद्धा के साथ शिव प्रसादी व बाबा गोविन्द्नाथ के आर्शिवाद के रूप में अटूट विष्वास के साथ जनकल्याण के लिए देते है ऐसी मान्यता है कि यह चमत्कारी श्रीविभूति हर आने वाले कष्ट को दूर कर देती है इस दिन महादेव का प्रसाद व अपने गुरू बाबा गोविन्द्नाथ का आर्शिवाद श्री विभूति के रूप में लेने वालों कि भारी भीड होती है। इस परिसर के दक्षिण में दो-कमरे ओर बने है जो शिव सेवा व धार्मिक ग्रंथों की किताबों का संग्राहलय का रूप ले चुके है। श्री रतनलालजी सोमानी को धार्मिक पुस्तकों व ग्रन्थों की किताबों का संग्राहलय का रूप ले चुके है। श्री रतनलालजी सोमानी को धार्मिक पुस्तकों व ग्रन्थों को पढना व उनका संग्रह करना अच्छा लगता है या इसे सोमानीजी की रूची भी माना जा सकता है। यहां बहुमुल्य व दुर्लभ ग्रन्थों का अच्छा कलेक्षन देखा जा सकता है। श्री सोमानजी के वात्सल्य के कारण मानव ही नहीं मोर तक उनके हाथों से दाना चुगते है वैसे तो श्रीरतनलालजी सोमानीजी पर बहुत लिखा व बतायाजा सकता है पर सफर की समयावधि की सीमा के कारण फिलहाल इतना ही।